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शिशु का हीमोग्लोबिन कितना होना चाहिए? बच्चों में हीमोग्लोबिन कैसे बढ़ाए? जानियें 11 आसान तरीकें

हम कई बार बड़ों के हिमोग्लोबिन के बारे में सुनते है। हीमोग्लोबिन के स्तर को उचित स्तर पर रखना कही जरुरी है, वैसे ही छोटे बच्चों के हीमोग्लोबिन स्तर को भी नियंत्रित रखना काफी जरुरी है। आज का हमारा यह article बच्चों के हीमोग्लोबिन के लेवल के बारे में है।

इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि हीमोग्लोबिन क्या होता है? शिशु का हीमोग्लोबिन कितना होना चाहिए? हीमोग्लोबिन कम या ज्यादा होने के क्या कारण हो सकते है? हीमोग्लोबिन की कमी से बच्चों को किस तरह से जूझना पड़ता है। बच्चों में हीमोग्लोबिन के कमी के क्या लक्षण होते है? और किस तरह से हम बच्चों में हीमोग्लोबिन कमी होने के बाद ध्यान रखने वाली बातें। शिशु का हीमोग्लोबिन बढ़ाने के लिए हमें शिशु को क्या करना चाहिए?

शिशु का हीमोग्लोबिन
शिशु का हीमोग्लोबिन

हीमोग्लोबिन क्या होता है।

हीमोग्लोबिन जिसे Hb भी कहां जाता है। लाल रक्त कोशिकाओं (RBC) में मौजूद एक महत्वपूर्ण प्रोटिन होता है जिस में heme मतलब irons पाया जाता है। हीमोग्लोबिन में जो irons के atoms होते है वह हमारे रक्त कोशिकाओं (RBC) के structure को, सामान्य आकार को बनाएं रखने में मदद करते है। साथ ही रक्त कोशिकाओं (RBC) को oxygen और carbon dioxide के परिवहन में भी मदद करता है। यह हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण घटक है जो संतुलित रहना आवश्यक है।

सरल भाषा में कहे तो हीमोग्लोबिन एक आयरन बेस प्रोटीन है जो हमारे शरीर में ऑक्सीजन का वाहक है, जो हमारे शरीर में ऑक्सीजन को एक जगह से दूसरी जगह जरूरत के हिसाब से पहुचता है। हीमोग्लोबिन में मौजूद आयरन हमारे रक्त कोशिकाओं के सस्ट्रक्चर को सामान्य बनाएं रखने में मदद करता है। जिस की वजह से हमारे खून का रंग लाल होता है।

हीमोग्लोबिन में आयरन यदि कम हो जाएँ तो शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर कम हो जाता है तब रक्त कोशिकाओं पर इस का सीधा असर होता है, जिस से रक्त कोशिकाएं संकुचित एवं पिली होने लगती है। जिस से शरीर का विकास काफी प्रभावित हो जाता है। शरीर में खून की कमी (एनेमिया) के साथ कई तरह के बिमारियों को निमंत्रण मिलता है।

शिशु का हीमोग्लोबिन कितना होना चाहिए।

Normally एक नवजात शिशु में 270ml याने एक कप के बराबर खून होता है। बड़ों की तुलना में शिशु का हीमोग्लोबिन का स्तर औसतन ज्यादा होता है। ऐसा इसलिए होता है जब शिशु गर्भ में होता है क्यो कि गर्भ में oxygen का स्तर ज्यादा होता है। और oxygen को परिवहन के लिए अधिक रक्तकोशिकाओं की जरूरत होती है। लेकिन कई हफ्तों के बाद शिशु का हीमोग्लोबिन का स्तर कम होने लगता है।

नीचे दिए गए चार्ट के माध्यम से आप अपने शिशु का normal हीमोग्लोबिन का लेवल जान सकते है।

AGEFEMALE RANGE (G/DL)MALE RANGE (G/DL)
1.0-30 days13.4 – 9.913.4 – 9.9
2.31-60 days10.7 – 17.110.7 – 17.1
3.2-3 months9.0 – 14.19.0 – 14.1
4.3-6 months9.5 – 14.19.5 – 14.1
5.6-12 months11.3 – 14.111.3 – 14.1
6.1-5 years10.9 –15.010.9 –15.0
7.5-11 years11.9 - 15.011.9 - 15.0
8.11-18 years11.9 - 15.012.7 – 17.7

उपरोक्त चार्ट में 0 days से 18 years के बच्चों का नॉर्मल हीमोग्लोबिन लेवल दिखाया गया है।

बच्चों में हीमोग्लोबिन के कमी के क्या लक्षण होते है?

जब शिशु माँ के गर्भ में होता है, तो सभी जरुरी पोषण तत्व के साथ आयरन और जरुरी खून की मात्रा उसे माँ से ही मिलती है। जन्म के बाद भी शिशु में आयरन की पर्याप्त मात्रा होती है, लेकिन 6 माह के उपरांत कुछ निम्न कारणों से बच्चे के शरीर में आयरन की मात्रा कम हो सकती है, जो शिशु के शरीर में हीमोग्लोबिन को कम करता है, जिसे बच्चे को एनीमिया जैसे बीमारी होने की सम्भावना बढ़ जाती है।

  1. 6 माह के उपरांत भी शिशु को उपरी भोजन शुरू ना करना या सही मात्रा में शिशु को उपरी भोजन का आहार नही खिलाना।
  2. माँ के दूध के बजाय शिशु को ऊपर का दूध देना जैसे, गाय, भैस या फिर फार्मूला मिल्क देना ,शिशु के आयरन कमी का कारण हो सकता है।
  3. शिशु को बार-बार बिमारियों से जब लढना पड़ता है, जैसे बार बार होनेवाले दस्त, अन्य किसी बिमारी का सही इलाज ना होने या बीमारी के बाद सही पोषण ना मिलने के कारण भी शिशु का हीमोग्लोबिन स्तर कम हो सकता है।

इस के साथ ही महत्वपूर्ण बात आपको बता दें कि 9 से 24 महीनों के अंदर के को बच्चे होते है उनमें बहुत ज्यादा chances होते है कि हीमोग्लोबिन की कमी हो जाए। इसका reason यह है कि 9 से 24 महीनों में बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास काफ़ी तेजी से होता है। बच्चे की सबसे ज्यादा growth इसी दौरान होती है। और शरीर को विकसित होने के लिए शरीर में आयरन का होना बहुत जरूरी होता है। इस दौरान कई बार बच्चों को iron rich food नहीं मिल पाता। या किसी अन्य वजह से भी शरीर में आयरन की कमी हो जाती है। जिस से शिशु का हीमोग्लोबिन लेवल कम हो जाता है।

हीमोग्लोबिन की कमी की वजह से हम बच्चों में कुछ लक्षण देख सकते है जो हीमोग्लोबिन के कमी को identify कर सकते है। जैसे आपका शिशु या बच्चा बार बार बीमार पड़ रहा है। उसका बुखार बार बार repeat हो रहा है। या आपका बच्चा जल्दी थकान महसूस कर रहा है। या बच्चा ज्यादा चिड़चिड़ा हो गया है या बार बार रों रहा है। बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास में कमी आ गई है। और हीमोग्लोबिन की कमी की वजह से हाथ ज्यादा सफेद दिखने लगेंगे। ऐसे कुछ लक्षणों से हम बच्चों में हीमोग्लोबिन की कमी को जान सकते है।

बच्चों में हीमोग्लोबिन की कमी के लक्षण निम्न हो सकते हैं, जिस पर हर पेरेंट्स को ध्यान देने की आवश्यकता होती है। अगर आप के शिशु में भ आप यह लक्षण पाते है तो हीमोग्लोबिन के कमी को आप समझ सकते हो।

  • बच्चे का अत्याधिक थकान महसूस करना – जैसे बच्चा किसी एक्टिविटीज से जल्दी थक जाता है।
  • शारीरिक रूप से बच्चे का विकास ना हो पाना – जैसे उम्र के हिसाब से बच्चे का वजन या हाइट ना बढ़ पाना। 
  • बच्चे की त्वचा रंग पीला पड़ना साथ ही दिल की धड़कन का तेज होना और जीभ पर छाले होना।
  • शिशु के सीने और सर में दर्द होना साथ ही शिशु के हांथ-पैरों का ठंडा पड़ना।

बच्चों में हीमोग्लोबिन की कमी के सभी लक्षण हम ने यहाँ इंगित नही किये है।  अगर आपको इनमें से कोई भी लक्षण अपने बच्चे में दिखाई दें, तो आपको तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। और उन के सलाह से ही बच्चे का सही इलाज करना चाहिए

 

हीमोग्लोबिन की कमी से बच्चों को किस तरह से जूझना पड़ता है।

लाल रक्त कोशिकाओं (RBC) में पाए जाने वाले हीमोग्लोबिन की कमी आने से बच्चों को थकान, बार बार चक्कर आना, हृदय गति का तेज होना, हांफना या सीने मै दर्द होना, शरीर का सफेद होना ऐसे कई लक्षणों से हम एनीमिया जैसे बीमारी को पहचान सकते है। इसलिए एनीमिया में हीमोग्लोबिन का परिक्षण आवश्यक होता है।

शिशु का हीमोग्लोबिन लेवल कम होने के वजह से शिशु में kidny की समस्या भी देखी जा सकती है। हीमोग्लोबिन की कमी के वजह से शरीर में oxygen वहन की क्षमता भी कम हो जाती है।

सिकलसेल एनीमिया
सिकलसेल एनीमिया एक अनुवांशिक बीमारी है, जिस में लाल रक्त कोशिकाओं में सामान्य हीमोग्लोबिन के स्थान पर HbS हीमोग्लोबिन होने के कारण लाल रक्त कोशिकाएं ऑक्सीजन के अभाव में हसिया के आकर की हो जाती है। सिकलसेल एनीमिया के लक्षण शिशु अवस्था में ही सामने आने लगते है। जिस में रक्त कोशिकाएं टूटने लगती है, जिस के कारण हल्का पीलिया होने से बच्चे का शरीर पिला दीखाई देने लगता है। तिल्ली बढ़ जाती है किन्तु निरंतर रक्त प्रवाह अवरुद्ध होने के कारण तिल्ली छोटी भी हो जाती है।और साथ ही रक्त गाढ़ा होने के कारण स्थानीय तौर पर छोटे छोटे थक्के बनते रहते है जिस से शिशु के शरीर से विभिन्न अंग प्रभावित होते है।

बच्चों में हीमोग्लोबिन कमी होने के बाद ध्यान रखने वाली बातें

  • किसी भी उम्र में यह समस्या देखी जा सकती है लेकिन आमतौर पर ज्यादा तर 9 से 24 महीनों में बच्चों में हीमोग्लोबिन की कमी की समस्या देखी जा सकती है। शिशु का हीमोग्लोबिन का स्तर maintain रखने के लिए या बढ़ाने के लिए हमें उसके खानपान पर विशेष ध्यान रखना होता है।
  • शरीर में irons की कमी के कारण हीमोग्लोबिन की लेवल कम होती है। इसलिए बच्चों को iron और minerals rich food देना आवश्यक होता है।
  • अगर आप का बच्चा 6 month के ऊपर हो गया है और उस में हीमोग्लोबिन की कमी पाई जाती है तो आप बच्चे को दूध देना कम कर दे। ऐसा इसलिए दूध में calcium की मात्रा अधिक होती है जो शरीर में irons का absorption कम करता है।
  • बच्चों को vitamin C rich food ज्यादा दे क्यो कि vitamin C शरीर में irons के absorption को बढ़ाता है।
  • जब भी आप अपने शिशु के लिए कोई आहार बना रहे हो तो उसे लोहे के बर्तन में बनाए। ध्यान रहे लोहे का बर्तन जंग लगा हुआ नहीं होना चाहिए। अच्छे से साफ किया हुआ हो।
  • शिशु का हीमोग्लोबिन कम होना या ज्यादा होना अनुवांशिकता भी हो सकता है। आप के परिवार में कई पीढ़ियों से अगर यह समस्या है तो वह आप के शिशु में भी देखी जा सकती है।
  • बच्चों में हीमोग्लोबिन की समस्या पर यदि ध्यान ना दिया जाए तो आगे चलकर बच्चे में अस्थमा, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर जैसी समस्या भी हो सकती है।

अगर किसी कारण वश शिशु को मां का दूध नहीं मिल पाता तो शिशु को गाय का दूध दिया जाता है इस से भी 6 माह के कम उम्र के बच्चों में हीमोग्लोबिन की कमी पाई जा सकती है। ध्यान रखें 6 माह के कम उम्र के बच्चों को गाय का दूध ना दे। आप डॉक्टर्स की सलाह से बच्चेको farmulla milk दे सकते हो।

बच्चों में हीमोग्लोबिन कमी होने के बाद हमें क्या करना चाहिए?

शारीरिक विकास के दौरान बच्चे को एक संतुलित आहार की जरूरत होती है। जिस में irons, minerals, vitamins, proteins से भरपूर आहार की आवश्यकता होती है। खून मे irons की कमी की वजह से ही शरीर का हीमोग्लोबिन कम होता है। इसलिए हमें बच्चों को irons से भरपूर आहार देने की आवश्यकता होती है।

फोर्टिफाइड सेरेलक

6 माह इ उपरांत हमें शिशु को उपरी आहार शुरू करने की आवश्यकता होती है, जिस से उसके शरीर को आयरन के साथ जरुरी पोषण तत्व मिल सकें। इस के लिए हम शिशु को सेरेलक देना शुरू कर सकते है। फोर्टिफाइड सेरेलक या कम शुगर वाले सेरेलक बच्चों की आयरन की कमी को दूर कर सकते है।

हरी सब्जियां

शिशु का हीमोग्लोबिन का स्तर बढ़ने के लिए बच्चों को हरी सब्जियां खिलानी चाहिए। जिस से उनके शरीर की irons की मात्रा को बढ़ाया जा सकें। हरी सब्जियों में पुदीना, चौलाई, पालक साग, सहजन की पत्तियां, धनियां पत्ता, गोगू में पर्याप्त मात्रा में irons पाया जाता है।

किशमिश

सुखाएं हुए अंगूर को किशमिश कहां जाता है जो dry foods में शुमार होता है। शरीर में हीमोग्लोबिन को बढ़ाने के लिए किशमिश भी एक अच्छा विकल्प है सकता है। जिस मे irons और B-complex प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। जो बच्चे एनीमिया से ग्रस्त होते है। उनके लिए किशमिश सब से ज्यादा फायदेमंद हो सकता है।

रागी

रागी प्राकृतिक irons का एक बेहतरीन स्त्रोत होता है। एनीमिया और हीमोग्लोबिन के कमी से जूझने वाले बच्चों एवं वयस्कों के लिए भी रागी को अपने आहार में शामिल करना फायदेमंद होता है। रागी में irons के साथ vitamin C भी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है जो शरीर में irons के absorption को बढ़ाता है।

ओट्स

शिशु का हीमोग्लोबिन बढ़ाने और संतुलित रखने के लिए ओट्स भी अच्छा विकल्प है सकता है। उसे आप बच्चे के नाश्ते के रूप में बच्चे को दे सकते हैं। ओट्स में irons के साथ साथ minerals और B complex भी होता है जो शरीर में खून की कमी को पूरा करता है।

टमाटर

आप बच्चे को सलाद में और सैंडविच में भी टमाटर खिला सकते है या टमाटर जा ज्यूस भी से सकते है। टमाटर में विटामिन सी और लाइकोपीन जैसे तत्व मौजूद होते है जो irons का absorption increase करने में काफी मदद करते है।

अनार

अगर आपको लगता है कि आप के शिशु का हीमोग्लोबिन कम ना हो, बच्चे को एनीमिया से ना जूझना पड़े तो आपको अपने बच्चे को रोजाना एक अनार खाने में देना चाहिए। या बच्चे को अनार का ज्यूस पीने को देना चाहिए। अनार एक super food है जिस में irons, minerals के साथ प्रोटीन,विटामिन, कैल्शियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

चुकंदर

Irons की अधिक मात्रा होने के कारण हमारे शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं (RBC) को बढ़ाने के लिए और उन्हें सक्रिय करने के लिए काफ़ी मददगार साबित होने वाला फल है चुकंदर। एनीमिया जैसे रोगों में चुकंदर अत्यंत लाभदायक सिद्ध होता है। आप अपने बच्चों को चुकंदर का ज्यूस भी पिला सकते है या उसका सलाद के रूप में भी प्रयोग कर सकते हैं।

गाजर

आपके शिशु का हीमोग्लोबिन संतुलित रखने के लिए आप अपने शिशु को गाजर अवश्य खिलाए अथवा गाजर का ज्यूस अवश्य दे। गाजर में विटामिन्स, पोटैशियम मिनरल्स के साथ साथ B complex भी होता है। जो शरीर में खून की मात्रा को बढ़ाता है।

खजूर

मैग्नेशियम, पोटेशियम के साथ भरपूर मात्रा में irons खजूर में पाया जाता है। जो शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं को बढ़ाने में मददगार साबित होता है। अपने बच्चे को रोजाना खजूर खिलाने से उसके शरीर के irons की कमी को पूरा किया जा सकता है।

तिल और गुड़

शिशु का हीमोग्लोबिन संतुलित रखने के लिए हम तिल और गुड़ का भी प्रयोग कर सकते है। खासकर काले तिल और गुड़ का सेवन करने से शरीर में खून की मात्रा बढ़ती है।

शिशु का हीमोग्लोबिन स्तर बढाने के लिए भारत सरकार द्वारा उठायें गये कदम 

हमारे देश में एनीमिया के रोकथाम के लिए तथा बच्चो में हीमोग्लोबिन के स्तर को बढाने के लिए भारत सरकार द्वारा कई ऐसे कार्यक्रम चलाये जा रहे है, जिसमें ,

  • 6 माह से 5 साल के बच्चों के लिए हफ्ते में दों बार 1 ml आयरन सिरप दिया जाता है। (अपने नजदीकी आंगनवाडी केंद्र पर)
  • 5 से 10 साल के बच्चों के लिए हफ्ते में एक बार 1 आयरन की टेबलेट दी जाती है। (स्कूल जानेवाले बच्चों को स्कूल में – स्कूल न जानेवाले बच्चों को अपने नजदीकी आंगनवाडी केंद्र पर)
  • 10 से 18 साल के बच्चों के लिए हफ्ते में एक बार 1 आयरन की टेबलेट दी जाती है। (स्कूल जानेवाले बच्चों को स्कूल में – स्कूल न जानेवाले बच्चों को अपने नजदीकी आंगनवाडी केंद्र पर)

शरीर में हीमोग्लोबिन बढ़ने से क्या होता है?

अब तक हम ने शिशु में पाए जानेवाली हीमोग्लोबिन के कमी के कारणों के साथ लक्षणों और उपायों को जाना है। साथ ही कुछ ऐसे आयरन रिच फूड्स के बारे में जाना है जो बच्चों के शरीर में आयरन की मात्रा को बढ़ाते है। लिकिन इस के साथ ही में यह जानना भी आवश्यक है की शरीर में हीमोग्लोबिन स्तर के बढ़ने के बाद क्या होता है, हीमोग्लोबिन के बढ़ने से कौन सी बिमारियों का खतरा बढ़ता है, और इस के क्या लक्षण होते है।

शिशु का हीमोग्लोबिन लेवल बढने से क्या होता है?

अक्सर शिशुओं में डीहाइड्रेशन की वजह से हीमोग्‍लोबिन बढ़ने की समस्‍या होती है | हीमोग्लोबिन का स्तर बढ़ने पर आपकी दिमागी क्षमता भी प्रभावित होती है | शरीर से अक्सर ब्लीडिंग होती है जैसे नाक से खून निकलना या फिर दांतों की जड़ों, मसूड़ों से खून आना हीमोग्‍लोबिन बढ़ने के संकेत माने जा सकते है | पेट का भरा हुआ होना , पेट में दर्द होना, धुंधला दिखाई ,हल्का सिर दर्द भी हीमोग्लोबिन के बढ़ने के कारण हो सकता है।

शरीर में जब हीमोग्लोबिन बढ़ता है तो यह काफी नुकसान देता है | इससे आप मधुमेह , त्वचा का रंग बदलना, यकृत को नुकसान , और कैंसर जैसी बीमारी भी हो सकती है |  

ऐसे में आप को जरुरी है की जल्द से जल्द अपने डॉक्टर्स को दिखाएँ और उनके परामर्श पर सही इलाज करें।आगर आप शिशु को भोजन से मिलने वाले आयरन के आलावा कोई आयरन टेबलेट या अन्य सप्लीमेंट्स देते हो तो उसे तुरंत रोक दें। 

महत्वपूर्ण

बच्चों के शरीर में पाए जाने वाली खून की कमी (एनीमिया) को नजरंदाज ना करें। इस से आगे चलकर बच्चे को कई खतरनाक बीमारियां हो सकती है। जो आपके शिशु के लिए घातक हो सकती है। अगर बच्चे के शरीर में हीमोग्लोबिन के कमी के लक्षण पाए जाते है तो आप अपने बच्चे का अपने डॉक्टर्स से चेक अप जरूर कराएं। और डॉक्टर्स की सलाह से बच्चे का सही इलाज करें।

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